मासिक धर्म के बारे में कपोल कल्पनाएं जो लड़कियों को स्कूल जाने से रोकती हैं
(Courtesy of Malin Fezehai / Malala Fund)
प्राचीन रोम में, प्रकृतिविज्ञानी और दार्शनिक, प्लीनी द एल्डर (Pliny the Elder) ने लिखा कि मासिक धर्म वाली महिलाओं के पास एक ही नज़र में बगीचे को सुखाने, स्टील की धार कम करने और मक्खियों के झुंड को मारने की ताकत होती है।
न्यू गिनी के द मेई एंगा (The Mae Enga) का यकीन था कि माहवारी से निकलने वाला रक्त इसके संपर्क में आने वाले लोगों को बीमार कर सकता है और मार सकता है।
और युपित एस्कीमोस (Yupiit peoples) सोचते थे कि शिकार करने वाले कपड़े और उपकरण मासिक धर्म से गुज़र रही महिला की गंध से प्रभावित हो सकते हैं।
हालांकि ये विश्वास अब हास्यास्पद लगते हैं (कम से कम ऐसी हमारी उम्मीद है), लेकिन मासिक धर्म के बारे में ग़लत जानकारी आज के दिन भी मौजूद है। इस तरह की ग़लत धारणाएं लड़कियों को न केवल चिकित्सीय जोखिम में डाल सकती हैं बल्कि वे अक्सर उन्हें स्कूल जाने से भी रोकती हैं।
हम मासिक धर्म के बारे में पाँच मौजूदा कपोल कल्पनाओं का पर्दाफाश करेंगे और इस बात पर प्रकाश डालेंगे कि किस तरह से सक्रिय कार्यकर्ता और संगठन इन विश्वासों को चुनौती दे रहे हैं।
कपोल कल्पना: मासिक धर्म गंदा होता है।
माहवारी से निकलने वाला द्रव रक्त और ऊतकों से बना होता है, और यह गंदा या हानिकारक नहीं होता। फिर भी, यह विश्वास दुनिया भर में बना हुआ है कि माहवारी अस्वच्छ होती है।
साना लोखंडवाला (Sana Lokhandwala) कहती हैं कि पाकिस्तान में मासिक धर्म से गुज़र रही लड़कियों और महिलाओं पर सामान्य रूप से गंदा होने का ठप्पा लगाया जाता है और मासिक धर्म के दौरान उन्हें “अलग-थलग अंधेरे स्थानों पर रखा जाता है” और “किसी भी मानवीय परस्पर संवाद से दूर रखा जाता है”। ज़बरदस्ती एकांत स्थानों पर रखे जाने से लड़कियाँ मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं जा पातीं।
(चित्र सौजन्य: Sana Lokhandwala / HER Pakistan)
अपनी बहन सुमेरा के साथ, साना ने पाकिस्तानी लड़कियों और महिलाओं को मासिक धर्म के बारे में शिक्षित करने के लिए HER Pakistan नाम के संगठन की स्थापना की। वे शरीर के इस कुदरती कार्य के बारे में लड़के और लड़कियों को सही जानकारी देने के लिए स्कूलों में कार्यशालाएं करती हैं और बताती हैं कि माहवारी क्यों गंदी नहीं होती। HER Pakistan सुविधाओं से वंचित उन समुदायों में स्वच्छता संबंधी स्वास्थ्यकर और किफ़ायती उत्पादों तक लड़कियों की पहुँच बनाने में मदद भी करता है जहाँ लड़कियाँ अक्सर अपनी माहवारी से निपटने के लिए “[चिथड़ों], कागज़, पत्तियों और यहाँ तक कि रेत” का भी इस्तेमाल करती हैं।
कपोल कल्पना: लड़की की माहवारी हो जाने के बाद, वह शादी कराने के लिए तैयार होती है।
पहली बार माहवारी होना यौवन का पहला महत्वपूर्ण चरण होता है, ऐसा तब होता है जब शरीर ज्यादा वयस्क होने के लिए बदलाव शुरु करता है। फिर भी, मासिक धर्म इस बात का संकेत नहीं है कि कोई लड़की विवाह के योग्य हो गई है। औसतन, लड़कियों को पहली माहवारी 12 वर्ष की आयु में होती है। उस आयु में विवाह करना लड़कियों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए हानिकारक नतीजे सामने ला सकता है।
“जब किसी लड़की को उसकी पहली और दूसरी माहवारी होती है तो कुछ अभिभावकों का विश्वास होता है कि ऐसी लड़की विवाह लायक आयु वाली हो गई है,” युगांडा समुदाय की 21 वर्षिया साइसन अहाबवे (Syson Ahabwe) कहती हैं। “वास्तव में, लड़कियों के लिए उनका स्कूल से निकाल लिया जाना सामान्य सी बात है ताकि उनका विवाह किया जा सके।”
युगांडा में, लाभ-निरपेक्ष संस्था Let Them Help Themselves (LTHT), की मासिक धर्म स्वच्छता राजदूत के रूप में, साइसन (Syson) लड़कियों को उनकी माहवारी के बारे में शिक्षित करती हैं और विवाह करने के लिए मासिक धर्म वाली लड़कियों को स्कूल से जबरन निकाले जाने जैसी रीतियों को चुनौती देती हैं। LTHT के साथ, साइसन उन अन्य विश्वासों का भी खंडन करती हैं जो लड़कियों को बंधन में डालते हैं जैसे कि माहवारी के दौरान लड़कियों को खाना नहीं बनाना चाहिए, गायों को दुहना नहीं चाहिए या भाई-बहनों के साथ एक बिस्तर पर सोना नहीं चाहिए।
(चित्र सौजन्य: Syson Ahabwe / Let Them Help Themselves)
कपोल कल्पना: अफ्रीका में 10 में से एक लड़की अपनी माहवारी के दौरान स्कूल नहीं जा पाती।
संगठन अक्सर लड़कियों की शिक्षा में बाधा के रूप में मासिक धर्म के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इस आंकड़े का उपयोग करते हैं — लेकिन इसका कोई मूल स्रोत नहीं है। यह पता नहीं है कि अफ्रीका में कितनी लड़कियाँ अपनी माहवारी के दौरान स्कूल नहीं जा पातीं क्योंकि महाद्वीपवार कोई अध्ययन नहीं हुआ है। लय बनाए रखने के लिए, मासिक धर्म स्वास्थ्य संबंधी आंदोलन को स्कूल उपस्थिति पर पड़ने वाले मासिक धर्म संबंधी प्रभावों के बारे में नवीनतम और बड़े पैमाने पर अनुसंधान की और यह जानने की ज़रूरत है कि ऐसे कौन से समाधान हैं जो इन चुनौतियों का मुकाबला करने में सबसे ज्यादा प्रभावी हैं।
मलाला निधि अनुसंधान और नीति प्रबंधक (Malala Fund Research and Policy Manager), लूसिया फ्राई (Lucia Fry) का कहना है, “इस बात पर अभी तक पर्याप्त शोध नहीं हुआ है कि लड़कियों को मासिक धर्म आरंभ होने पर इससे निपटने के लिए शिक्षा को प्रभावित किए बिना मदद करने के लिए किस संयोजन की आवश्यकता है।"
कपोल कल्पना: मासिक धर्म को गुप्त रखा जाना चाहिए।
क्या आपको पता है कि प्रतिदिन करीब 800 मिलियन लड़कियों और महिलाओं को माहवारी होती है? महिलाओं की आधी आबादी — वैश्विक आबादी का लगभग 26% — प्रजनन आयु की है। उतनी ही सामान्य बात यह है कि, अनेक समुदाय अब भी खुले रूप से मासिक धर्म के बारे में चर्चा नहीं करते।
इंडोनेशिया में हाल में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि मासिक धर्म को गुप्त रखा जाना चाहिए, इस पर विश्वास करने वाली लड़कियाँ भी स्कूलों में अनुपस्थिति की दर में योगदान देती हैं। बहुत सी प्रवासी और शरणार्थी महिलाएं मासिक धर्म को शर्म का विषय मानती हैं और बाद में, अपनी बेटियों को इसके लिए तैयार नहीं करतीं। तुर्की में We Need to Talk जैसी संस्थाओं ने उन समुदायों से बातचीत करनी आरंभ की है जो परंपरागत रूप से मासिक धर्म पर चर्चा नहीं करते और लड़कियों को उनके शरीर में आए इस बदलाव से निपटने के बारे में शिक्षित नहीं करते।
(चित्र सौजन्य: Puja Rai / Visible Impact)
कपोल कल्पना: माहवारी के दौरान लड़कियों को एकांत में भेज देना चाहिए।
मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और माहवारी के दौरान लड़कियों और महिलाओं को एकांत में बंद रखने की कोई चिकित्सीय ज़रूरत नहीं है। तथापि, हर माह, दुनिया के कुछ ख़ास क्षेत्रों में मासिक धर्म वाली महिलाएं इस कलंक के कारण खुद को अलग-थलग कर लेती हैं।
नेपाल की मासिक धर्म संबंधी अधिवक्ता पूजा राय (Puja Rai) बताती हैं कि छाउपडी (chhaupadi) यानि मासिक धर्म के दौरान लड़कियों और महिलाओं को एकांत में भेजने की परंपरा, ने एक किशोरी के रूप में उसके आत्मविश्वास को तोड़ डाला। “मैंने कभी नहीं बताया कि तथाकथित ‘न छूने योग्य पापों (untouchable sins)’ के लिए मैंने कितना अकेला या कितना भेदभावपूर्ण और वर्जित महसूस किया” वह याद करती हैं। नेपाल में, लगभग 90% लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान सीमित गतिशीलता या सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है।
ऐसी ही परंपराएं भारत में मौजूद हैं। 17 वर्षीया छात्रा स्निग्धा बताती है कि उसके देश के ग्रामीण इलाकों में, कुछ परिवार “तनाव और कष्ट के कारण से, माहवारी वाली लड़कियों को स्कूल नहीं जाने देते, और बहुत से ऐसे रीति-रिवाज़ हैं जहाँ मासिक धर्म के दौरान लड़कियों को अकेले एक झोपड़ी में डाल दिया जाता है।”
Visible Impact के साथ, पूजा नेपाल में सैंकड़ों लड़कियों और लड़कों के लिए स्कूलों में कार्यशालाएं आयोजित करती हैं ताकि उन्हें इस बारे में शिक्षित किया जा सके कि मासिक धर्म कोई शर्मनाक चीज़ नहीं है। पूजा अब गर्व से अपनी माहवारी को स्वीकार करती है और आशा करती है कि उसके काम के माध्यम से, नेपाल की प्रत्येक लड़की में ऐसा ही आत्मविश्वास आएगा।
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